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पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी के अधिकार, जानें कानून क्या कहता है Property Rights in India

Property Rights in India: भारतीय समाज में पैतृक संपत्ति के बंटवारे को लेकर लंबे समय से भेदभाव की स्थिति रही है। लेकिन आज के समय में कानून ने बेटे और बेटी को समान अधिकार प्रदान किए हैं। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में किए गए संशोधन और 2020 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने बेटियों के अधिकारों को और मजबूत किया है।

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पैतृक संपत्ति में समान अधिकार का कानून

2005 का संशोधन भारतीय कानून में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस कानून ने बेटियों को सहदायिक का दर्जा दिया, जिससे उन्हें पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार मिल गए। यह अधिकार जन्म से ही प्राप्त होता है, और इसमें विवाह की स्थिति से कोई फर्क नहीं पड़ता। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि “एक बार बेटी, हमेशा बेटी” का सिद्धांत लागू होता है।

स्वयं अर्जित और पैतृक संपत्ति में अंतर

पैतृक संपत्ति और स्वयं अर्जित संपत्ति में कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण अंतर है। पैतृक संपत्ति में बेटे-बेटी का जन्मजात अधिकार होता है, जबकि स्वयं अर्जित संपत्ति के बारे में पिता अपनी इच्छा से निर्णय ले सकते हैं। हालांकि, बिना वसीयत के मृत्यु की स्थिति में दोनों प्रकार की संपत्तियां कानूनी वारिसों में समान रूप से बंटती हैं।

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विवाहित बेटियों के विशेष अधिकार

2020 में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि विवाहित बेटियों के अधिकार उनके पिता के जीवित रहने या न रहने से प्रभावित नहीं होंगे। यह फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होता है, यानी 2005 से पहले जन्मी बेटियों को भी इसका लाभ मिलेगा।

संपत्ति विवाद और समाधान

कई बार परिवारों में संपत्ति को लेकर विवाद उत्पन्न होते हैं। ऐसी स्थिति में कानून बेटियों के पक्ष में मजबूत खड़ा है। विवाद के समाधान के लिए पहले पारिवारिक बातचीत का प्रयास करना चाहिए। यदि यह विकल्प काम नहीं करता, तो कानूनी मार्ग अपनाया जा सकता है। अदालतें ऐसे मामलों में त्वरित और निष्पक्ष निर्णय लेती हैं।

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भविष्य की राह

आज के समय में बेटियों के संपत्ति अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ी है। कानून ने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक बदलाव का भी प्रतीक है।

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निष्कर्ष

संपत्ति में समान अधिकार महज एक कानूनी प्रावधान नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता का प्रतीक है। आज का समाज बेटे-बेटी में भेदभाव को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह जरूरी है कि हर व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहे और उनका सम्मान करे।

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नोट: किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले योग्य वकील की सलाह अवश्य लें।

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